एस्चेरीचिअ कोलाई इन्फेक्शन – ई कोलाई एक संक्रमण है जो प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावित करता है तथा पोल्ट्री फार्म में प्रतिरक्षा दमन या कमजोर प्रबंधन द्वारा शुरू होता है ये दूषित मल तथा दूषित अंडे के माध्यम से भी फैलता है इसके कई प्रकार के लक्षण हो सकते है जो की बीमारी और वातावरण की तीव्रता पर निर्भर करता है| लेकिन झालरदार पंख, अवसाद, कम भोजन का सेवन, खाँसी, और सांस लेने में आवाज का परिवर्तन ई-कोलाई के कुछ लक्षण हैं |अगर आपकी मुर्गी ई-कोलाई बीमारी से संकर्मित है, तो आपको उसके दिल के पास मोटी हल्की पीली परत देखने को मिल सकती है इस बीमारी मे मुर्गी का विकास और उत्पादन न हो पाना आम बात है ,धूल, अमोनिआ और कुड़े मे नमी की बढ़ोतरी श्वसन उपकला को परेशान करती है और ई-कोलाई के लिए द्वारा प्रदान करती है |
अधिकतर मामलों मे ई-कोलाई द्वितीयक रोग है क्योकि जब भी पोल्ट्री पक्षी को कोई भी बीमारी होती है तो ई-कोलाई भी अपने लिए जगह ढूंढ लेती है । इस लिए कभी भी अपने पक्षी को कोई भी वैक्सीन लगाना न भूले। अगर हम बात कर ही रहे है वैक्सीन की तो आपको मैं बातना चाहूंगी की रेसर्चेर्स ने ये पाया है की ई-कोलाई वैक्सीन लगाने से पक्षी रोग मुक्त तो होगा तथा पक्षियों में उत्पांदन लाभ भी होगा।
एवियन रोगजनक ई. कोलाई (APEC) पोल्ट्री के क्षेत्र मे एक महंगी बीमारी है और ये ब्रॉयलर और ब्रीडर के साथ-साथ लेयर को भी प्रभावित कर सकती है। लम्बे समय तक जीवित रहने वाले पक्षियों में यह हानिकारक है क्योकि यह पक्षियों में उनके पालन पोषण के बाद उन्हें हानि दे सकता है जो की लाभप्रदता के लिए बहुत खराब है, मैनुअल दा कोस्टा, (डीवीएम, पीएचडी) ज़ोएटिस में परिणाम अनुसंधान के सहयोगी निदेशक के अनुसार।
सबसे अधिक APEC आपको लेयर में 18 से 25-30 सप्ताह के बीच से शुरू होकर उत्पादन के चरम तक विशेष रूप से देखने को मिल सकता है। APEC आमदौर पर एक और समय पर पाया जा सकता है जिसे की मोल्टिंग कहते है और यह उत्पादन चक्र के दौरान किसी भी समय पर पाया जा सकता ह।
हाल ही मे एक अध्यन मे देखा गया है की एक जीवित ई. कोलाई टीकाकरण ने अंडा देने वाले मुर्गो की उसी नस्ल को कितनी सुरक्षा प्रदान की है। यह अध्ययन इंडोनेशिया में हुआ, जहां देश में पाए जाने वाले O78 और O2 उपभेदों को अलग किया गया और प्रयोगात्मक सुविधाओं में लाया गया। पक्षियों को दो घरों मे बाटें गए, एक को 23 सप्तहा मे और दूसरे को 44 सप्तहा मे चुनौती दी गई हर एक घर में पक्षियों को टीकाकरण ( टीकाकरण और गैर-टीकाकरण ) और चुनौती ( O78, O2 और गैर-चुनौतीपूर्ण )के अनुसार बांटा गया। 2 सप्ताह से 12 सप्तहा की आयु में स्प्रे के माध्यम से टीकाकरण किया गया। चुनौती की एक सप्तहा बाद APEC घाव मुलायन के लिए पक्षियों का नमूना लिया गया ।
नतीजा – टीकाकरण वाले झुंड में मृत्यु का स्तर 10 गुना कम था। तथा 45 सप्तहा वाले घर में अंडा देने वाले पक्षियों का उत्पादन भी बड़ा।
यदि आपके क्षेत्र में APEC है तो टीकाकरण करवाना पक्षियों के लम्बे जीवन के लिए बहुत फाईदेमंद है। यह बहुत दिलचस्प था कि टीकाकरण वाले पक्षी घर टीकाकरण वाले पक्षियों से लगभग 11 अंडे ज़्यादा दे रहे थे। और यह दिलचस्प इसलिए भी था क्योकि मुर्गियों को 44 सप्तहा की आयु में इस चुनौती से रूबरू करवाया गया।
- टीकाकरण के साथ साथ मुर्गियों का सही वातावरण में रहना भी उन्हें APEC जैसी बिमारियों से बचता है।
- अच्छी पर्यावरणीय स्थितियाँ जैसे की साफ हवा, पानी और स्वच्छता सुनिश्चित करना भी बहुत आवश्यक है ।
- वह अंत में यह भी कहते है कि APEC रोग चाहे प्राथमिक कारण हो लेकिन संक्रमण द्वितीयक ही है ।