तेलंगाना के पोल्ट्री किसान मांग कर रहे है सरकार के हस्तक्षेप की !!!खम्मम: खम्मम जिले में ब्रॉयलर चिकन उगाने वाले छोटे पोल्ट्री किसान चाहते हैं कि राज्य सरकार बाजार में हस्तक्षेप करे और उन्हें उद्योग के बड़े खिलाड़ियों से बचाए। वे बाजार के खिलाड़ियों पर कीमतों में हेरफेर करने का आरोप लगा रहे हैं जिसके कारण 15,000 पक्षियों से कम पक्षी विकसित करने वाले लोगों को बहुत नुकसान हो रहा है |
खम्मम ग्रामीण मंडल के गुडुरपाडु में 10,000 पक्षियों को पालने वाले पोल्ट्री मालिक बट्टू नागराजू ने कहा, “जब बड़े खिलाड़ी बाजार में अपना उत्पाद लाते हैं तो ब्रॉयलर चिकन की कीमत अधिक होती है। लेकिन जब वही उत्पाद हम किसान बाजार में लेकर जाते है तो उनकी कीमत कम हो जाती हैं।
किसानो का कहना है कि वो 45 दिनों का एक ब्रायलर चिकन विकसित करने के लिए 150 रुपये का खर्चा करते हैं। और उस समय उस चिकन का वजन करीबन 2.5 किलो होता है। जिससे कि पोल्ट्री किसानो को कोई लाभ नहीं होता है।
पोल्ट्री किसानो को कुछ लाभ तभी होगा जब चिकन कि कीमत 70 रुपयेप्रति किलो हो। लेकिन कभी कभी व्यापारी उनसे ब्रायलर चिकन केवल 50 रुपये प्रति किलो के हिसाब से खरीद लेते है। जिसके कारण उन्हें नुकसान होता है।
नागराजू ने मांग की कि छोटे पोल्ट्री किसानों को बचाने के लिए सरकार द्वारा ब्रॉयलर चिकन की कीमत को विनियमित किया जाए।
किसानो का कहना कि राज्य में कीमतों में 1 रुपये की कमी से भी नुकसान हो रहा है। मेडक में, चिकन 150 रुपये प्रति किलो में उपलब्ध होगा। लेकिन वही चिकन वारंगल में 200 रुपये प्रति किलो मिलेगा।
ऐसे हालत बाजार में सिर्फ और सिर्फ भ्रम की स्थिति पैदा करते हैं। तेलंगाना के किसान चाहते हैं की पुरे तेलंगाना राज्य में चिकन की कीमत एक समान ही रहे।
रघुनाधापालेम मंडल के वी वेंकटयापालेम में पोल्ट्री यूनिट चलाने वाले पारुपल्ली नागेश्वर राव जी का कहना है की , बड़े पोल्ट्री उदयोगपति आज लाभ कमा रहे है क्युकी चिकन की कीमतों पर सरकार द्वारा आजतक कोई भी विनियमन नहीं है, इसलिए छोटे किसानो को न्याय दिलाने के लिए सरकार को बाजार की ताकतों द्वारा बनाये मायाजलम में हस्तक्षेप करना बहुत आवश्यक हैं।
एक किसान के लिए पक्षी का 45 दिनों की उम्र पार करने के बाद उसे पालना बहुत मुश्किल हो जाता हैं, क्योंकि इस सीमा के बाद एक पक्षी को खिलाना किसानो को बहुत मेहेंगा पड़ता है। मजबूरन वो अपने पक्षी को तुरंत बेचने की कोशिश करने लगते है, भले ही उस वक़्त उन्हें नुकसान ही क्यों न हो रहा हो।
इसलिए तेलंगाना के पोल्ट्री किसान चाहते हैं की सरकार हस्तक्षेप कर पोल्ट्री के छोटे किसानो को इस संकट से निकले।