Phytochemicals [फाइटोकेमिकल्स] दो ग्रीक शब्द Phyto और Chemical से मिलकर बना है जो पौधों से प्राप्त रसायनों को संदर्भित करता है. इसे हम पौध रसायन के तौर पर जानते हैं।
दुनिया भर के शोधकर्ताओं द्वारा अब तक लगभग 4000 से अधिक फाइटोकेमिकल्स की पहचान की जा चुकी है. जिसमे से 150 ऐसे पौध रसायन है जिनका गहन अध्ययन किया गया है. प्रकृति में अभी भी ऐसे कई रसायन है जो मनुष्यों के अध्ययन क्षेत्र से बाहर है.
आज इस विषय पर फार्मेसी, बायोटेक्नोलॉजी, बॉटनी, जूलॉजी, नैनोटेक्नोलॉजी, चिकित्सा जगत और कृषि जैसे वृहत क्षेत्र के वैज्ञानिक फाइटोकेमिकल्स से सम्बंधित रिसर्च पर ध्यान केन्द्रित किये हुए है. इनके द्वारा सम्पादित शोध और प्राप्त शोध परिणाम कहीं न कहीं मानवीय समाज के लिए ही है. जिससे समाज व पर्यावरण का समग्र विकास हो सके।
यह सर्वविदित है कि पौधे इन रसायनों का उत्पादन स्वयं की रक्षा के लिए करते हैं लेकिन पिछले कुछ दशकों में हुए शोध से आधुनिक विज्ञान भी मानने लगा है कि यह मनुष्यों को भी बीमारियों से बचा सकते हैं।
विश्व के प्राचीनतम चिकित्सा पद्धतियों में से एक ‘आयुर्वेद’ पूर्ण रुप से प्रकृति/पौध आधारित चिकित्सा हजारों सालों से निरंतर मानव स्वास्थ्य और कल्याण के लिए उपयोग की जा रही है।
यह कहना उचित नही होगा कि एक मात्र फाइटोकेमिकल सप्लीमेंट्स से ही मानव स्वास्थ्य में चिरकालिक सुधार हो जाते हैं. यहाँ यह जान लेना जरुरी है कि पौधों द्वारा प्राप्त रसायन, मात्रा, प्रभाव के तरीके, रोग के प्रकार जैसे कारकों का भी ध्यान रखना नितांत आवश्यक है।
फाइटोकेमिकल जो स्वाभाविक रूप से हमारे लिए बहुत कम लागत में उपलब्ध है,
लेकिन फिर भी हम ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं, फाइटोकेमिकल स्रोत एंटीऑक्सिडेंट, जीवाणुरोधी, और एंटीवायरल गुणों का एक समृद्ध स्रोत हैं,
कुछ फाइटोकेमिकल जो हमें ज्ञात हैं या लंबे समय से हमारी परंपरा में उपयोग करते हैं।
अगर हम समझदारी से इन फाइटोकेमिकल उपयोग करे तो , agp रेगुलर और कोर्स के लिए जो यूज कर रहे है जिसका हमें कुछ समय बाद आर्थिक रूप से भारी नुकसान होता है। फार्म मे रेजिस्टेंस डेवलप होने की वजह से ।
यह कहानी हम से हर कोई जानता है अधिकांश लोग उस पर सहमत भी है लेकिन उस पर उचित ध्यान न देना इसका प्रमुख कारण है या तो हम इसके बारे मे जानना नहीं चाहते और हो सकता हमरा न्यूट्रीशन साइंस अपने फार्म एप्लीकेशन के लिए अंडरकॉन्फिडेंस है क्यों की इसकी कमर्शियल मार्केटिंग कम है और ना के बराबर है जब की इस phytochemical पे काफी अधिक रिसर्च रेफरेंस है
लेकिन अभी भी फीड न्यूट्रीशन जेन्टिक मैनुअल गाइड के अनुसार किया जा रहा जो की रेफरेंस के लिए अच्छा लेकिन फील्ड मे फीड formulation or poultry nutrition total डिपेंड है
- टाइप of फार्मिंग ( ओपन और क्लोज हाउस)
2.लोकल raw materials जो की काफी सस्ता और मौसम के अनुरूप एवलेबल है
लेकिन इनको यूज करने की सब से बड़ी दिकत है इसका इंपोर्टेंस एक्सेप्ट करना अगर हम इन लोकल resources को प्रोपर न्यूट्रीशन information se यूज करे तो हमे , performance, production मे ग्रोथ, mortality control और economic फीड कॉस्ट बनाया जा सकता।
लेकिन अभी भी फीड formulation अधिकांस फार्मर और इंटीग्रेटर प्रोटीन, एनर्जी मिनरल्स, विटामिन प्रीमिक्स और एजीपी जेनेटिक मैनुअल के अनुसार करते है जब की दूसरे एडीटिव जैसे प्रोबायोटिक, प्रीबायोटिक्स, फाइटोकेमिकल अभी भी मनोवैज्ञानिक रूप में उपयोग करते हैं, वर्तमान में भारत के कुछ राज्यों में अपनी यात्रा के दौरान मैंने पाया कि पुराने फार्म या नए आइसोलेटेड फार्म (50 से 60 किमी कोई खेत नहीं) एक ट्रेंड फॉलो किया जा रहा है आँख मूंद कर लेयर बर्ड मे मंथली कोर्स और ब्रायलर में पहले दिन से एंटी मायकोप्लाज़्मा दवा का उपयोग किया जा रहा है बजाय मूल कारण का इलाज करने के। जिसका परिणाम सरूप जाने अनजाने में उपचार और दवा के चक्र में हरेक फार्मर और इंटीग्रेटर है । हकीकत ये है फार्म मैनेजमेंट के अलावा किसी भी respiratory डिजीज का मुख्य कारण ।
- फ़ीड डीईबी का असंतुलित होना है, जो सेल्यूलर इम्यूनिटी पे काम करता है
- अन्य सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे विटामिन और मिनरल्स जो आम तौर पर फ़ीड में raw materials के परिवर्तन के रूप इनकी रिक्वायरमेंट फीड मे चेंज होता हैं, जो आमतौर पर अनदेखा किया जाता है क्यो की फीड formulations मे केवल प्रोटीन और एनर्जी के ऊपर मे raw materials को विचार किया जाता है नतीजन इन माइक्रो न्यूट्रिएंट की कमी मेटाबोलिक डिजीज और इम्यूनिटी चैलेंज की समस्या उत्पन होना।
- फीड टॉक्सिसिटी
(आम तौर पर लोग को एफ्लाटॉक्सिन पर चिंता होती है, जबकी वास्तविकता मे एफ्लाटॉक्सिन के अलावा है, चार अन्य टॉक्सिन भी फीड टॉक्सिन मे मौजूद है जो संयुक्त रूप से अधिक प्रभाव डालते हैं) जो सीधे तौर पर इम्युनिटी वैक्सीनेशन टाइटर से संबंधित है।
- मौसम परिवर्तन के रूप में या ट्रांस चरण में एनडी और आईबी टाइटर को मेंटेन करने की आवश्यकता है जो सीधे माइकोप्लाज़्मा और अन्य श्वसन रोग से संबंधित है, ऐसा देखा गया है
- एनडी और आईबी एसेंशियल ऑयल जैसे ब्रोंकोवेस्ट के टीकाकरण के बाद 3 दिनों के लिए टीकाकरण के 12 घंटे बाद स्प्रे करें
एनडी और आईबी के टाइटर को बढ़ाने में इसका अधिक प्रभाव है, पोल्ट्री पक्षियों में श्वसन गर्र ध्वनि प्रभाव को भी कम करता है जो अधिकांश तोर पे lasota वैक्सीन के बाद फार्म में अनुभव किया जा सकता है ।
- फ़ीड में मिर्च को शामिल करना जिसमें उच्च एंटीऑक्सिडेंट होते हैं, विटामीन A होता है जो की अंडे की योल्क कलर के लिए के लिए काफ़ी उपयोगी है श्वसन बीमारी जैसे की LPAI और HPAI मे रामबाण के रुप मे काम करता है ।
टेरपेनोइड्स जो मिर्ची मे प्रचुर मात्रा में होता है रिसर्च से ये भी ज्ञात हुआ है की मिर्ची एनडी टाइटर को बढ़ाने में काफी उपयोगी है , इसके अलावा ये जीवाणुरोधी, एंटीवायरल के लिए proven fact हैं, यह आजकल बहुत सस्ता आसानी से उपलब्ध है।
निष्कर्ष :
फ़ीड में स्थानीय रूप से उपलब्ध संसाधनों के साथ फायोटोकेमिकल उपयोग जैसे
- मिर्च
- लहसुन
- इमली
- हल्दी
- तुलसी (Ocimum)
स्प्रे के लिए
1.. मेन्थॉल
- नीलगिरी
- दालचीनी
उचीत सेंसिबल न्यूट्रीशन साइंस है अन्यथा
Agpऔर ट्रिटमेंट चक्र हम सभी का वेट कर ही रहे है ।
उचित रूप से प्रेबियोटिक, प्रोबायोटिक्स , फाइटोकेमिकल ( लोकल अवेलेबल) को यूज करने के लिए अपने न्यूट्रिशनिस्ट से जरूर चर्चा करे।
ज़रूरी पोषक तत्व
पोल्ट्री के सभी वर्गों में पोषक तत्वों के निम्नलिखित छह वर्ग जीवन, विकास, उत्पादन और प्रजनन के लिए आवश्यक हैं।
- जल:शुद्ध जल प्रत्येक जिव का सबसे सस्ता एवं नितांत उपयोगी पोषक तत्व है। मुर्गी पानी के बिना अधिक समय तक जीवित रह सकते हैं। ताजे पानी की एक निरंतर आपूर्ति का अभाव युवा मुर्गी के विकास और अंडे के उत्पादन में बाधा डालता है।
- प्रोटीन:यह आम तौर पर सबसे महंगी फ़ीड सामग्री है, लेकिन अगर सबसे अच्छी तरह से इस्तेमाल किया जाता है तो लाभदायक परिणाम लाने की संभावना है। प्रोटीन शारीरिक विकास और अंडे के उत्पादन को बढ़ावा देने में अधिक प्रभावी है। परन्तु प्रोटीन का संतुलित मात्रा हि फीड में मिलाएं अतिरिक्त प्रोटीन किसी भी उम्र के मुर्गों के लिए हानिकारक होता है।
- कार्बोहाईड्रेट:ये अनाज और अनाज उत्पादों में स्टार्चयुक्त पदार्थ होते हैं। केवल एक भूखे झुंड में कार्बोहाइड्रेट की कमी होगी। वे ईंधन और ऊर्जा की आपूर्ति करते हैं, जो शरीर या अंडे में वसा में प्रवर्तित होती है।
- वसा:कुछ वसा व्यावहारिक रूप से सभी फ़ीड सामग्री में मौजूद है। मछली के तेल या मांस और मछली उत्पादों से वसा की अधिकता पक्षियों में पाचन परेशान कर सकती है, और कई विकारों को जन्म दे सकती है।
- खनिज:कैल्शियम कार्बोनेट (चूना पत्थर या बजरी, क्लैम या सीप के गोले, हड्डी, आदि) से विटामिन डी की उपस्थिति में, अंडे के अधिकांश खोल बनाते हैं। कैल्शियम और फॉस्फोरस हड्डी का प्रमुख हिस्सा बनाते हैं; लेकिन अतिरिक्त फॉस्फोरस (हड्डी पदार्थों से) आहार में मैंगनीज कमि के कारन बन सकतें है।, जिससे टेढ़े–मेढ़े हड्डियों और चूजों और मुर्गों में फिसलन हो सकती है। नमक कुछ आवश्यक खनिजों की आपूर्ति करता है। ग्रीन फीड में कुछ अत्यधिक महत्वपूर्ण खनिजों की छोटी मात्रा होती है।
- विटमिन्स:युवा मुर्गों की स्वाभाविक रूप से शीघ्र वृद्धि उनके राशन में किसी भी विटामिन की कमी को प्रकट करती है; अंडों की हैचिंग एक ब्रीडर आहार के विटामिन सामग्री का एक महत्वपूर्ण परीक्षण है। (1) विटामिन ए (हरे फ़ीड, पीले मकई और मछली के तेल से)। विटामिन ए सर्दी और संक्रमण से बचाता है। (२) विटामिन डी (समुद्री मछली के तेल और सिंथेटिक उत्पादों में, या सूर्य की अल्ट्रा–वायलेट किरणों के संपर्क में आने पर शरीर में बनता है)। खोल या हड्डी में खनिज के बिछाने में और पैर की कमजोरी और रिकेट्स को रोकने में विटामिन डी मददगार है। (3) राइबोफ्लेविन (दूध, जिगर, खमीर, हरा चारा, सिंथेटिक राइबोफ्लेविन आदि)। राइबोफ्लेविन अंडे और दोनों में अंडे सेने के बाद चूजों और मुर्गे के विकास को बढ़ावा देता है; इसलिए यह हैचबिलिटी में सबसे महत्वपूर्ण कारकों में से एक है। राइबोफ्लेविन युवा चूजों में पोषण या कर्ल–टू पैरालिसिस को रोकता है।
- ताजा पानी उपलब्ध करायें
चूजे शीघ्र ही खाना व पीना सीख लेते हैं। चूजों को प्रतिदिन स्वच्छ व ताजा पानी उपलब्ध करायें। पानी के बर्तन रोज साफ करके एकदम हावर के बाहर लीटर पर ही रखें। चूजों के आने से 4 घण्टा पूर्व ही पानी ब्रूडर भवन में रख दें ताकि पानी का तापमान ब्रूडर भवन के अनुरूप (लगभग 650 सेन्टीग्रेड या अधिक हो जाए।) पानी में चीनी भी मिलाई जा सकती है। इससे प्रारंभिक मृत्यु दर कम हो सकती है। प्रथम 15 घण्टों में 8 प्रतिशत तक चीनी पानी में मिलाकर दी जा सकती है। यदि चूजे दबावग्रस्त दिखाई दें तो प्रथम 3-4 दिन पानी में विटामिन व इलैक्ट्रोलाईट्स घोल कर दिये जा सकते हैं। पानी सदैव दाने पूर्व दें तथा यदि सब चूजों को पानी नहीं मिल पा रहा हो तो पानी के बर्तन व प्रकाश की तीव्रता बढ़ा दें। शुरू में फव्वारेनुमा बाद में नालीनुमा बर्तन प्रयोग में लाये जाते हैं।
फीड तैयार करना
जो किसान अपना खुद का फ़ीड बनाने में सक्षम हैं, वे उन फीड पर बहुत बचत करते हैं जो उत्पादन लागत का 80 प्रतिशत तक लेते हैं।
फीड तैयार करने के लिए, किसानों को पियर्सन स्क्वायर विधि का उपयोग करना होगा। इस विधि में, सभी जानवरों और पक्षियों के लिए किसी भी फ़ीड की तैयारी के लिए सुपाच्य क्रूड प्रोटीन (डीसीपी) बुनियादी पोषण की आवश्यकता है। पूरी खबर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।